80 Inspiring Kabir Ke Dohe in Hindi | कबीर के दोहे

Kabir Ke Dohe in Hindi

Sant Kabir Ke Dohe in Hindi

बात जब जिंदगी के रस्ते पे चलने की आता है, सही रह पे टिके रहना कोई आसान बात नहीं है. कोई जब आपको मार्ग दर्शन करने के लिए खुद दो कदम चलके आपके हाथ थामे, तो वो जो हौसला मिलता है – उसी हौसले पे ये दुनिया कायम है. चुनिंदा ऐसा कुछ बेहतरीन सब्द भगवन का दिया हुआ तौफा है, जो हमें संत Kabir Ke Dohe in Hindi की तौरपे मिले.

Kabir ke Dohe – कबीर दास के दोहे (1-10)

संत कबीर दास के दोहे – सरलार्थ हिंदी के सहित – Sant Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi. काल करे सो आज कर, आज करे सो अब। पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

Kabir Ke Dohe in Hindi

दोहा :

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब |
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ||

हिंदी अर्थ :

कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यूंकि पलभर में प्रलय जो जाएगी फिर आप अपने काम कब करेंगे।

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय |
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ||

जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीश(काम, क्रोध, भय, इच्छा) को त्यागना होगा। लालची इंसान अपना शीश(काम, क्रोध, भय, इच्छा) तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है।

जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही |
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जिस घर में साधु और सत्य की पूजा नहीं होती, उस घर में पाप बसता है। ऐसा घर तो मरघट के समान है जहाँ दिन में ही भूत प्रेत बसते हैं।

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार |
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ||

मालिन को आते देखकर बगीचे की कलियाँ आपस में बातें करती हैं कि आज मालिन ने फूलों को तोड़ लिया और कल हमारी बारी आ जाएगी। अर्थात आज आप जवान हैं कल आप भी बूढ़े हो जायेंगे और एक दिन मिटटी में मिल जाओगे। आज की कली, कल फूल बनेगी।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष (जहर) से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीश(सर) देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।

ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग |
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||

कबीर दास जी कहते हैं कि अब तक जो समय गुजारा है वो व्यर्थ गया, ना कभी सज्जनों की संगति की और ना ही कोई अच्छा काम किया। प्रेम और भक्ति के बिना इंसान पशु के समान है और भक्ति करने वाला इंसान के ह्रदय में भगवान का वास होता है।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये |
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ||

कबीर दास जी कहते हैं कि खजूर का पेड़ बेशक बहुत बड़ा होता है लेकिन ना तो वो किसी को छाया देता है और फल भी बहुत दूर(ऊँचाई ) पे लगता है। इसी तरह अगर आप किसी का भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने से भी कोई फायदा नहीं है।

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें |
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि निंदक(हमेशा दूसरों की बुराइयां करने वाले) लोगों को हमेशा अपने पास रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं। इसीलिए कबीर जी ने कहा है कि निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं।

लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट |
अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ||

कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार ज्ञान से भरा पड़ा है, हर जगह राम बसे हैं। अभी समय है राम की भक्ति करो, नहीं तो जब अंत समय आएगा तो पछताना पड़ेगा।

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Sant Kabir Das ke Dohe – कबीर दास के दोहे (11-20)

Kabir Ke Dohe in Hindi

चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह |
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ||

जब से पाने चाह और चिंता मिट गयी है, तब से मन बेपरवाह हो गया है| इस संसार में जिसे कुछ नहीं चाहिए बस वही सबसे बड़ा शहंशाह है।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ||

दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में सब ईश्वर को भूल जाते हैं। अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं।

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात |
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ||

कबीर दास जी कहते हैं कि इंसान की इच्छाएं एक पानी के बुलबुले के समान हैं जो पल भर में बनती हैं और पल भर में खत्म। जिस दिन आपको सच्चे गुरु के दर्शन होंगे उस दिन ये सब मोह माया और सारा अंधकार छिप जायेगा।

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये |
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ||

चलती चक्की को देखकर कबीर दास जी के आँसू निकल आते हैं और वो कहते हैं कि चक्की के 2 पाटों के बीच में कुछ साबुत नहीं बचता।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय |
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ||

कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग |
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ||

कबीर दास जी कहते हैं जैसे तिल के अंदर तेल होता है, और आग के अंदर रौशनी होती है ठीक वैसे ही हमारा ईश्वर हमारे अंदर ही विद्धमान है, अगर ढूंढ सको तो ढूढ लो।

जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप |
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जहाँ दया है वहीँ धर्म है और जहाँ लोभ है वहां पाप है, और जहाँ क्रोध है वहां सर्वनाश है और जहाँ क्षमा है वहाँ ईश्वर का वास होता है।

जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान |
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ||

जिस इंसान अंदर दूसरों के प्रति प्रेम की भावना नहीं है वो इंसान पशु के समान है।

जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश |
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ||

कमल जल में खिलता है और चन्द्रमा आकाश में रहता है। लेकिन चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब जब जल में चमकता है तो कबीर दास जी कहते हैं कि कमल और चन्द्रमा में इतनी दूरी होने के बावजूद भी दोनों कितने पास है। जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब ऐसा लगता है जैसे चन्द्रमा खुद कमल के पास आ गया हो। वैसे ही जब कोई इंसान ईश्वर से प्रेम करता है वो ईश्वर स्वयं चलकर उसके पास आते हैं।

जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ||

साधु से उसकी जाति मत पूछो बल्कि उनसे ज्ञान की बातें करिये, उनसे ज्ञान लीजिए। मोल करना है तो तलवार का करो म्यान को पड़ी रहने दो।

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Kabir ke Dohe with Hindi meaning (21-30):

Kabir Ke Dohe in Hindi

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||

अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है।

पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत |
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||

कबीर दास जी कहते हैं कि बीता समय निकल गया, आपने ना ही कोई परोपकार किया और नाही ईश्वर का ध्यान किया। अब पछताने से क्या होता है, जब चिड़िया चुग गयी खेत।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए |
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ||

अगर आपका मन शीतल है तो दुनियां में कोई आपका दुश्मन नहीं बन सकता।

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार |
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ||

तीर्थ करने से एक पुण्य मिलता है, लेकिन संतो की संगति से 4 पुण्य मिलते हैं। और सच्चे गुरु के पा लेने से जीवन में अनेक पुण्य मिल जाते हैं।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय |
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि मैं सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई इंसान नहीं है। मैं ही सबसे स्वार्थी और बुरा हूँ अर्थात हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर आप खुद के अंदर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है।

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय |
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि लोग रोजाना अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को कोई साफ़ नहीं करता। जो इंसान अपने मन को भी साफ़ करता है वही सच्चा इंसान कहलाने लायक है।

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे |
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ||

जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंद रहा था, तो मिटटी कुम्हार से कहती है – तू मुझे रौंद रहा है, एक दिन ऐसा आएगा जब तू इसी मिटटी में विलीन हो जायेगा और मैं तुझे रौंदूंगी।

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए |
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और नाही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीश(क्रोध, काम, इच्छा, भय) त्यागना होगा।

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय |
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि एक सज्जन पुरुष में सूप जैसा गुण होना चाहिए। जैसे सूप में अनाज के दानों को अलग कर दिया जाता है वैसे ही सज्जन पुरुष को अनावश्यक चीज़ों को छोड़कर केवल अच्छी बातें ही ग्रहण करनी चाहिए।

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही |
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहंकार(मैं) था, तब मेरे ह्रदय में हरी(ईश्वर) का वास नहीं था। और अब मेरे ह्रदय में हरी(ईश्वर) का वास है तो मैं(अहंकार) नहीं है। जब से मैंने गुरु रूपी दीपक को पाया है तब से मेरे अंदर का अंधकार खत्म हो गया है।

Sant Kabir Ji Ke Dohe with meaning in Hindi Language inspires us in every hurdle of our lives.

Kabir Das ke Dohe – संत कबीर के दोहे (31-40):

Kabir Ke Dohe in Hindi

ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार |
हाय कबीरा फिर गया, फीका है संसार ||

कबीर दास जी कहते हैं कि ये संसार तो माटी का है, आपको ज्ञान पाने की कोशिश करनी चाहिए नहीं तो मृत्यु के बाद जीवन और फिर जीवन के बाद मृत्यु यही क्रम चलता रहेगा।

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए |
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि आप कितना भी नहा धो लीजिए, लेकिन अगर मन साफ़ नहीं हुआ तो उसे नहाने का क्या फायदा, जैसे मछली हमेशा पानी में रहती है लेकिन फिर भी वो साफ़ नहीं होती, मछली में तेज बदबू आती है।

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||

कबीर दास जी कहते हैं कि तू क्यों हमेशा सोया रहता है, जाग कर ईश्वर की भक्ति कर, नहीं तो एक दिन तू लम्बे पैर पसार कर हमेशा के लिए सो जायेगा।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना |
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना ||

हिन्दूयों के लिए राम प्यारा है और मुस्लिमों के लिए अल्लाह (रहमान) प्यारा है| दोनों राम रहीम के चक्कर में आपस में लड़ मिटते हैं लेकिन कोई सत्य को नहीं जान पाया।

नहीं शीतल है चंद्रमा, हिम नहीं शीतल होय |
कबीर शीतल संत जन, नाम सनेही होय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि चन्द्रमा भी उतना शीतल नहीं है और हिम(बर्फ) भी उतना शीतल नहीं होती जितना शीतल सज्जन पुरुष हैं। सज्जन पुरुष मन से शीतल और सभी से स्नेह करने वाले होते हैं।

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय |
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि लोग बड़ी से बड़ी पढाई करते हैं लेकिन कोई पढ़कर पंडित या विद्वान नहीं बन पाता। जो इंसान प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ लेता है वही सबसे विद्वान् है।

राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय |
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ||

जब मृत्यु का समय नजदीक आया और राम के दूतों का बुलावा आया तो कबीर दास जी रो पड़े क्यूंकि जो आनंद संत और सज्जनों की संगति में है उतना आनंद तो स्वर्ग में भी नहीं होगा।

कबीर कलिजुग आई करी…, कीये बहुत जो मीत |
जिन दिलबंध्या एक सू…, ते सुखु सोवै निचींत ||

इस कलयुग में, लोग कई दोस्त बनाते हैं। जो लोग अपने मन को भगवान को अर्पित करते हैं वे बिना किसी चिंता के सो सकते हैं।

कामी अमि नॅ ब्वेयी…, विष ही कौ लई सोढी |
कुबुद्धि ना जाई जीव की…, भावै स्वमभ रहौ प्रमोधि ||

वासना का आदमी अमृत की तरह नहीं जीता। वह हमेशा जहर खोजता है। भले ही भगवान शिव स्वयं मूर्ख को उपदेश देते हों, मूर्ख अपनी मूर्खता से बाज नहीं आता।

शीलवंत सबसे बड़ा सब रतनन की खान |
तीन लोक की सम्पदा, रही शील में आन ||

शांत और शीलता सबसे बड़ा गुण है और ये दुनिया के सभी रत्नों से महंगा रत्न है। जिसके पास शीलता है उसके पास मानों तीनों लोकों की संपत्ति है।

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Kabir ke Dohe with Hindi meaning (41-50):

Kabir Ke Dohe in Hindi

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये |
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि हे प्रभु मुझे ज्यादा धन और संपत्ति नहीं चाहिए, मुझे केवल इतना चाहिए जिसमें मेरा परिवार अच्छे से खा सके। मैं भी भूखा ना रहूं और मेरे घर से कोई भूखा ना जाये।

माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए |
हाथ मेल और सर धुनें, लालच बुरी बलाय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि मक्खी पहले तो गुड़ से लिपटी रहती है। अपने सारे पंख और मुंह गुड़ से चिपका लेती है लेकिन जब उड़ने प्रयास करती है तो उड़ नहीं पाती तब उसे अफ़सोस होता है। ठीक वैसे ही इंसान भी सांसारिक सुखों में लिपटा रहता है और अंत समय में अफ़सोस होता है।

Sant Kabir Ke Dohe with meaning in Hindi Language is created to help our readers better understand the meaning of his valuable words.

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार |
साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ||

कबीर दास जी कहते हैं कि कड़वे बोल बोलना सबसे बुरा काम है, कड़वे बोल से किसी बात का समाधान नहीं होता। वहीँ सज्जन विचार और बोल अमृत के समान हैं।

आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर |
इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जो इस दुनियां में आया है उसे एक दिन जरूर जाना है। चाहे राजा हो या फ़क़ीर, अंत समय यमदूत सबको एक ही जंजीर में बांध कर ले जायेंगे।

जबलग भागती सकामता…, तबलग निर्फल सेव |
कहई कबीर वई क्यो मिलई…, निहकामी निज देव ||

जब तक भक्ति सशर्त होती है तब तक उसे कोई फल नहीं मिलता। लगाव वाले लोगों को कुछ ऐसा कैसे मिल सकता है जो हमेशा अलग हो?

कामी लज्या ना करई…, मन माहे अहीलाड़ |
नींद ना मगई संतरा…, भूख ना मगई स्वाद ||

जुनून की चपेट में आए व्यक्ति को शर्म नहीं आती। वह जो बहुत नींद में है, बिस्तर की परवाह नहीं करता है और जो बहुत भूखा है, वह अपने स्वाद के बारे में परेशान नहीं है।

ग्यानी मूल गवैया…, आपन भये करता |
ताते संसारी भला…, मन मे रहै डरता ||

एक व्यक्ति जो सोचता है कि उसने ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उसने अपनी जड़ें खो दी हैं। अब वह सोचता है कि वह ईश्वर के समान सर्वशक्तिमान है। गृहस्थ जीवन में लगा व्यक्ति बेहतर है क्योंकि वह कम से कम भगवान से डरता है।

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय |
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म तो ले लिया लेकिन अगर कर्म ऊँचे नहीं है तो ये तो वही बात हुई जैसे सोने के लोटे में जहर भरा हो, इसकी चारों ओर निंदा ही होती है।

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय |
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि रात को सोते हुए गँवा दिया और दिन खाते खाते गँवा दिया। आपको जो ये अनमोल जीवन मिला है वो कोड़ियों में बदला जा रहा है।

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और |
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ||

कबीर दास जी कहते हैं कि वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते। अगर ईश्वर आपसे रूठ गया तो गुरु का सहारा है लेकिन अगर गुरु आपसे रूठ गया तो दुनियां में कहीं आपका सहारा नहीं है।

Sant Kabir Ke Dohe in Hindi (51-60):

Kabir Ke Dohe in Hindi

कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय |
भक्ति करे कोई सुरमा, जाती बरन कुल खोए ||

कबीर दास जी कहते हैं कि कामी, क्रोधी और लालची, ऐसे व्यक्तियों से भक्ति नहीं हो पाती। भक्ति तो कोई सूरमा ही कर सकता है जो अपनी जाति, कुल, अहंकार सबका त्याग कर देता है।

कागा का को धन हरे, कोयल का को देय |
मीठे वचन सुना के, जग अपना कर लेय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि कौआ किसी का धन नहीं चुराता लेकिन फिर भी कौआ लोगों को पसंद नहीं होता। वहीँ कोयल किसी को धन नहीं देती लेकिन सबको अच्छी लगती है। ये फर्क है बोली का – कोयल मीठी बोली से सबके मन को हर लेती है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय |
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ||

कबीर दास जी मन को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! दुनिया का हर काम धीरे धीरे ही होता है। इसलिए सब्र करो। जैसे माली चाहे कितने भी पानी से बगीचे को सींच ले लेकिन वसंत ऋतू आने पर ही फूल खिलते हैं।

तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय |
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि तिनके को पाँव के नीचे देखकर उसकी निंदा मत करिये क्यूंकि अगर हवा से उड़के तिनका आँखों में चला गया तो बहुत दर्द करता है। वैसे ही किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति की निंदा नहीं करनी चाहिए।

कबीर भाथी कलाल की… , बहुतक बैठे आई |
सिर सौपे सोई पेवाई… , नही तौऊ पिया ना जाई ||

अमृत की दुकान में आपका स्वागत है। यहाँ पर कई बैठे हैं। किसी के सिर पर हाथ फेरना चाहिए और एक गिलास अमृत प्राप्त करना चाहिए।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर |
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ||

कबीर दास जी कहते हैं कि माया(धन) और इंसान का मन कभी नहीं मरा, इंसान मरता है शरीर बदलता है लेकिन इंसान की इच्छा और ईर्ष्या कभी नहीं मरती।

Sant Kabir Ke Dohe in Hindi meaning is provided here only. To read kabir ke dohe with meaning in hindi language in English, please switch the language tab.

कलि का स्वामी लोभिया… , पीतली धरी खटाई |
राज-दुबारा यू फिराई… , ज्यू हरिहाई गाई ||

इस कलयुग में जो खुद को स्वामी कहता है वह लालची हो गया है। वह खट्टी वस्तुओं के साथ पीतल के बर्तन जैसा दिखता है। वह एक गाय की तरह शासक की सुरक्षा चाहता है जो हरे चरागाह को देखकर भागता है।

चतुराई सूवई पड़ी… , सोई पंजर माही |
फिरी प्रमोधाई आन कौ… , आपन समझाई नाही ||

एक तोता दोहराता है जो भी ज्ञान पढ़ाया जाता है, लेकिन वह खुद को अपने पिंजरे से मुक्त करने का तरीका नहीं जानता है। लोगों ने आज बहुत ज्ञान प्राप्त किया है, लेकिन वे खुद को मुक्त करने में विफल हैं।

तीरथ करी करी जाग मुआ… , दूंघे पानी नहाई |
रामही राम जापन्तदा… , काल घसीट्या जाई ||

तीर्थयात्री के रूप में लोग कई स्थानों पर जाते हैं। वे ऐसे स्थानों पर स्नान करते हैं। वे हमेशा ईश्वर के नाम का जाप करते हैं लेकिन फिर भी, उन्हें समय के साथ मौत के घाट उतार दिया जाता है।

कलि का स्वामी लोभिया… , मनसा धरी बढाई |
देही पैसा ब्याज कौ… , लेखा कर्ता जाई ||

कलयुग के स्वामी को बहुत सारी बड़ाई की उम्मीद है। वह पैसा उधार देता है और बहीखाते में व्यस्त रहता है।

Sant Kabir Ke Dohe in Hindi (61-70):

Kabir Ke Dohe in Hindi

कबीर इस संसार को… , समझौ कई बार |
पूंछ जो पकडई भेड़ की… , उत्रय चाहाई पार ||

कबीर लोगों को यह बताने से तंग आ गए कि उन्हें मूर्खतापूर्ण तरीके से पूजा करने से बचना चाहिए। लोगों को लगता है कि वे एक भेड़ की पूंछ को पकड़कर पारगमन के महासागर को पार करेंगे।

ब्रह्मन गुरू जगत का… , साधु का गुरू नाही |
उर्झी-पुरझी करी मरी राह्य… , चारिउ बेडा माही ||

एक ब्राह्मण दुनिया का गुरु हो सकता है लेकिन वह एक अच्छे इंसान का गुरु नहीं है। ब्राह्मण हमेशा वेदों की व्याख्या के साथ शामिल होता है और वह ऐसा करते हुए मर जाता है।

कबीर मन फुल्या फिरे… , कर्ता हु मई धम्म |
कोटी क्रम सिरी ले चल्या… , चेत ना देखई भ्रम ||

कबीर कहते हैं कि लोग इस सोच के साथ फूले थे कि इतनी योग्यता अर्जित की जा रही है। वे यह देखने में विफल रहते हैं कि उन्होंने इस तरह के अहंकार के कारण कई कर्म बनाए हैं। उन्हें जागना चाहिए और इस भ्रम को दूर करना चाहिए।

हरी-रस पीया जानिये… , जे कबहु ना जाई खुमार |
मैमन्ता घूमत रहाई… , नाही तन की सार ||

जो लोग भक्ति के रस का स्वाद चखते हैं, वे हमेशा उस स्वाद में रहते हैं। उनके पास अहंकार नहीं है और वे कामुक सुख के बारे में कम से कम परेशान हैं।

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त |
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत ||

इंसान की फितरत कुछ ऐसी है कि दूसरों के अंदर की बुराइयों को देखकर उनके दोषों पर हँसता है, व्यंग करता है लेकिन अपने दोषों पर कभी नजर नहीं जाती जिसका ना कोई आदि है न अंत।

मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख |
मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख ||

कबीर दास जी कहते हैं कि मांगना तो मृत्यु के समान है, कभी किसी से भीख मत मांगो। मांगने से भला तो मरना है।

ज्यों नैनन में पुतली, त्यों मालिक घर माँहि |
मूरख लोग न जानिए , बाहर ढूँढत जाहिं ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जैसे आँख के अंदर पुतली है, ठीक वैसे ही ईश्वर हमारे अंदर बसा है। मूर्ख लोग नहीं जानते और बाहर ही ईश्वर को तलाशते रहते हैं।

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये |
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे उस समय सारी दुनिया खुश थी और हम रो रहे थे। जीवन में कुछ ऐसा काम करके जाओ कि जब हम मरें तो दुनियां रोये और हम हँसे।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय ||
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||

कबीर दास जी कहते हैं कि किताबें पढ़ पढ़ कर लोग शिक्षा तो हासिल कर लेते हैं लेकिन कोई ज्ञानी नहीं हो पाता। जो व्यक्ति प्रेम का ढाई अक्षर पढ़ ले और वही सबसे बड़ा ज्ञानी है, वही सबसे बड़ा पंडित है।

कबीर हरी रस यो पिया… , बाकी रही ना थाकी |
पाका कलस कुम्भार का… , बहुरी ना चढाई चाकी ||

कबीर ने भक्ति का रस चख लिया है, अब भक्ति के अलावा कोई स्वाद नहीं है। एक बार एक कुम्हार अपना बर्तन बनाता है और उसे पका लेता है, उस बर्तन को फिर से पहिया पर नहीं रखा जा सकता है।

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Kabir ke Dohe with meaning in Hindi language (71-80):

Kabir Ke Dohe in Hindi

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ |
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ||

जो लोग लगातार प्रयत्न करते हैं, मेहनत करते हैं वह कुछ ना कुछ पाने में जरूर सफल हो जाते हैं| जैसे कोई गोताखोर जब गहरे पानी में डुबकी लगाता है तो कुछ ना कुछ लेकर जरूर आता है लेकिन जो लोग डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रहे हैं उनको जीवन पर्यन्त कुछ नहीं मिलता।

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर |
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ||

कबीर दास जी कहते हैं कि जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुःख को समझता है वही सज्जन पुरुष है और जो दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे इंसान होने से क्या फायदा।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय |
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ||

कबीरदास जी इस दोहे में बताते हैं कि छोटी से छोटी चीज़ की भी कभी निंदा नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वक्त आने पर छोटी चीज़ें भी बड़े काम कर सकती हैं| ठीक वैसे ही जैसे एक छोटा सा तिनका पैरों तले कुचल जाता है लेकिन आंधी चलने पर अगर वही तिनका आँखों में पड़ जाये तो बड़ी तकलीफ देता है।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप |
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ||

कबीरदास जी कहते हैं कि ज्यादा बोलना अच्छा नहीं है और ना ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा है जैसे ज्यादा बारिश अच्छी नहीं होती लेकिन बहुत ज्यादा धूप भी अच्छी नहीं है।

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन |
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन ||

केवल कहने और सुनने में ही सब दिन चले गये लेकिन यह मन उलझा ही है अब तक सुलझा नहीं है| कबीर दास जी कहते हैं कि यह मन आजतक चेता नहीं है यह आज भी पहले जैसा ही है।

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दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार |
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार ||

कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत दुर्लभ है यह शरीर बार बार नहीं मिलता जैसे पेड़ से झड़ा हुआ पत्ता वापस पेड़ पर नहीं लग सकता।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान |
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ||

किसी विद्वान् व्यक्ति से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि ज्ञान की बात करनी चाहिए। असली मोल तो तलवार का होता है म्यान का नहीं।

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि |
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि ||

जो व्यक्ति अच्छी वाणी बोलता है वही जानता है कि वाणी अनमोल रत्न है| इसके लिए हृदय रूपी तराजू में शब्दों को तोलकर ही मुख से बाहर आने दें|

संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत |
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत ||

सज्जन पुरुष किसी भी परिस्थिति में अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते चाहे कितने भी दुष्ट पुरुषों से क्यों ना घिरे हों| ठीक वैसे ही जैसे चन्दन के वृक्ष से हजारों सर्प लिपटे रहते हैं लेकिन वह कभी अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।

यह तन विष की बेलरी… , गुरु अमृत की खान |
सीस दिए जो गुरु मिले… , तो भी सस्ता जान ||

यह शरीर जहर का एक थैला है। गुरु अमृत की खान है। यदि आपको अपना सिर कुर्बान करके उपदेश मिलता है, तो यह एक सस्ता सौदा होना चाहिए।

कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिखों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है।

वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म निरपेक्ष थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की थी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें अपने विचार के लिए धमकी दी थी।

हमने Kabir Ke Dohe in Hindi | कबीर के दोहे और सरलार्थ हिंदी में , kabir ke dohe with meaning in hindi language पोस्ट बनाने के लिए परिश्रम किया | मुझे लगता है कि मैंने यहां सभी पाठकों का ख़ुशी मिला हे। अगर मुझसे कुछ कुमारी हुई तो निचे कमेंट पे हमें जरूर बताये।

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